Friday, January 22, 2016

सफेद फिनाइल White Phenyl



गर्मी व नमी (moisture) कीटाणुओं के पलने व बढ़ने के लिये अत्यन्त उपयुक्त स्थितियाँ होती हैं। कीटाणुओं की वृद्धि दुर्गंध व रोगों को जन्म देती है। घरों व व्यवसायिक स्थानों के फर्श और स्नानगृह व शौचालय इन कीटाणुओं से अधिक प्रभावित होते हैं। इन रोग व दुर्गंधवाहक कीटाणुओं से मुक्ति हेतु कुछ रसायनिक मार्जकों (cleaners) का प्रयोग किया जाता है। ये कीटाणुनाशक मार्जक भारत में फिनाइल के नाम से जाने जाते हैं। फिनाइलें विभिन्न प्रकार के रसायनों से बनाई जाती हैं तथा उनके कीटाणुनाशन की क्रिया व क्षमता भी भिन्न होती है। मुख्य व अधिक प्रचलित फिनाइलें इस प्रकार हैः
1.       फीनोल (phenol) आधारित काली फिनाइल
2.       पाइन तेल से बनी श्वेत फिनाइल
3.       क्वाटर्नरि अमोनियम रसायनों से बनी पारदर्शी फिनाइल
4.       क्लोरीन (chlorine) आधारित आक्सीकारक (oxidising) कीटाणुनाशक मार्जक
30-35 वर्ष पूर्व काली फिनाइल अधिक प्रचलन में थी किन्तु आजकल श्वेत फिनाइल अधिक चलन में है। श्वेत फिनाइल को हर्बल फिनाइल की श्रेणी में रखा जा सकता है क्योंकि इसका प्रमुख घटक पाइन का तेल पाइन वृक्ष से प्राप्त किया जाता है। पाइन वृक्ष चीड़ के वृक्ष जैसा पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाने वाला वृक्ष होता है। श्वेत फिनाइल जल में पाइन तेल का पायस (emulsion) होता है। पायस तेल व जल के ऐसे अभिन्न मिश्रण को कहा जाता है जो रखने पर अलग न हो। पायस का सर्वोत्तम उदाहरण दुग्ध है जो जल में घृत का पायस है। तेल व जल के मिश्रण को अलग होने से रोकने के लिये पायसीकारकों (emulsifiers) का प्रयोग किया जाता है। श्वेत फिनाइल निर्माण हेतु प्रयोग किये जाने वाले पायसीकारक उत्तम गुणवत्ता वाले साबुन होते हैं तथा पाइन का तेल एक उत्तम विलायक (solvent) होता है। साबुन व विलायक मिल कर बहुत अच्छी सफाई करते हैं।

पाइन तेल की कीटाणुनाशक क्षमता व सुगंध उसमें उपस्थित एल्फा टर्पिनियोल नामक प्राकृतिक अल्कोहल के कारण होती है। इसलिये पाइन तेल में एल्फा टर्पिनियोल जितना अधिक होगा फिनाइल उतनी ही उत्तम बनेगी। पाइन तेल शून्य प्रतिशत एल्फा टर्पिनियोल से 70-80 प्रतिशत एल्फा टर्पिनियोल तक आता है। श्वेत फिनाइल निर्माण हेतु कम से कम 40 प्रतिशत एल्फा टर्पिनियोल का तैल प्रयोग किया जाना चाहिये। श्वेत फिनाइल बनाने के लिये पाइन तेल व पायसीकारक को परस्पर मिश्रित करके सान्द्र मिश्रण बना लिया जाता है जिसे श्वेत कीटाणुनाशक सान्द्र मिश्रण (White Phenyl Concentrate) कहा जाता है। यह सांद्र मिश्रण देखने में पाइन तेल जैसा ही पारदर्शी दिखता है। इस सांद्र मिश्रण में जल मिलाने पर दूध जैसी श्वेत फिनाइल बन जाती है। एक लीटर सांद्र मिश्रण में 9 से 10 लीटर जल मिलाने पर अच्छी फिनाइल बन जाती है। लेकिन निम्न श्रेणी के निर्माता 20 से 40 लीटर तक जल मिलाकर घटिया फिनाइल बना कर भी खूब बेच रहे हैं। इस स्थिति से बचने का अच्छा उपाय है कि बनी हुई श्वेत फिनाइल के स्थान पर Phenyl Concentrate खरीदा जाये और या तो स्वयं जल मिला कर फिनाइल बना ली जाये या Phenyl Concentrate को सीधे ही पोंछे वाले जल में मिला कर प्रयोग किया जाये। श्वेत फिनाइल का प्रयोग पालतु पशुओं को नहलाने के लिये भी किया जाता है।
         

4 comments:

AKHILESH MOHAN said...

bahut acchi jankari

Unknown said...

badhiya

Unknown said...

Bakwas

Unknown said...

नमस्कार जी 🙏सफेद फीनाईल बनाने के लिये गौमूत्र का प्रयोग उचित है क्या ? पाइन आयल मे emulsufier के अतिरिक्त thickner की भी जरूरत है क्या?