Sunday, February 25, 2018

गुडहल (Hibiscus) एक उत्तम औषध

गुडहल (Hibiscus) एक उत्तम औषध



क्लीनिकल रिसर्च में पाया गया है कि गुडहल (Hibiscus, Hibiscus sabdariffa) का क्वाथ (tea) एलोपैथिक औषधियों की अपेक्षा रक्तचाप (Blood Pressure) को अधिक प्रभावी ढंग से कम करता है। अन्य कई अनुसंधानों में पाया गया कि यह मूत्रमार्ग के संक्रमण (urinary tract infections) का अच्छा इलाज है तथा कोलेस्ट्रोल के स्तर (Cholesterol level) में सुधार करता है।
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गुडहल भारत में खूब उपलब्ध है। गुडहल के लाल फूल क्वाथ बनाने में प्रयोग किये जाते हैं। गुडहल का क्वाथ बनाने के लिये फूलों को जल में जल के लाल होने तक उबाला जाता है। गुडहल की जड़ का प्रयोग भी पाचन संबंधी समस्याओं के लिये किया जाता है।
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नाईजीरिया के एनूगू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ मेडिसिन (Collage of Medicine at University of Enugu) में एक अनुसंधान किया गया था। इस रिसर्च में ऐसे 80 व्यस्कों को शामिल किया गया था जिन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या थी किन्तु उन्होंने अभी तक किसी औषधि का सेवन नहीं किया था। उनके तीन समूह बनाए गए। एक समूह का इलाज गुडहल से किया गया, दूसरे समूह के रोगियों को उच्च रक्तचाप की ऐलोपैथिक औषधि hydrochlorothiazide दी गई और तीसरे समूह वालों को सान्त्वना औषध (Placebo) दी गई। चार सप्ताह के बाद रोगियों के रक्तचाप, मूत्र व रक्त की जाँच की गई। अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि गुडहल ने उल्लेखनीय ढंग से Systolic and Diastolic दोनों रक्तचापों को कम किया। गुडहल ने धमनियों के दबाव (Arterial Pressure) को कम किया और रक्त में सोडियम के स्तर को भी कम किया।
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रक्तचाप में गुडहल से होने वाली कमी ऐलोपैथिक औषधि के समान ही थी किन्तु गुडहल देना बन्द कर देने के बाद भी यह कमी लम्बे समय तक बनी रही, जबकि ऐलोपैथिक औषधि वाले समूह के रोगियों का रक्तचाप दवा बंद कर देने पर फिर बढ़ने लगा।
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2015 में एक और अध्ययन किया गया जिसमें उच्च रक्तचाप के 75 व्यस्क रोगियों को तीन समूहों में बाँटा गया। एक समूह को गुडहल का सत्त (Extract) दिया गया, दूसरे समूह को 10 मिलीग्राम ऐलोपैथिक औषधि Lisinopril (angiotensin-converting enzyme (ACE) inhibitor) दी गई और तीसरे समूह को सान्त्वना औषध (Placebo) दी गई। चार सप्ताह के बाद पाया गया कि गुडहल ने औसतन 76 प्रतिशत व Lisinopril ने 65 प्रतिशत रक्तचाप कम किया। गुडहल से दूसरे सप्ताह में ही Systolic रक्तचाप में उल्लेखनीय कमी होने लगी थी, जबकि Lisinopril से चार सप्ताह के बाद यह कमी आने लगी थी। गुडहल के इलाज में Lisinopril से होने वाले दुष्प्रभाव भी नहीं पाए गए।
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एक अन्य अध्ययन मैक्सिको के Centre of Biomedical Investigation में 90 उच्चरक्तचाप के रोगियों पर किया गया। इसमें एक समूह को प्रतिदिन 50 मिलीग्राम Captopril (एक अन्य angiotensin-converting enzyme (ACE) inhibitor) दी गई तथा दूसरे समूह को गुडहल के फूल का 10 ग्राम चूर्ण जल में मिलाकर दिया गया। चार सप्ताह के बाद पाया गया कि गुडहल के चूर्ण ने Systolic blood pressure को औसतन 139 to 124 mm Hg और Diastolic blood pressure को 91 to 79 mm Hg कम किया। जबकि Captopril से इतना उल्लेखनीय रक्तचाप कम नहीं हुआ।
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2014 में एक अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार जिसमें 5 क्लीनीकल रिसर्चों को शामिल किया गया था, गुडहल ने Systolic blood pressure को औसतन 7.58 mm Hg और Diastolic blood pressure को 3.53 mm Hg कम किया।
बहुत सारी क्लीनिकल स्टडीज़ में पाया गया है कि गुडहल Low Density Lipoprotein Cholesterol (LDL-c) and triglyceride level को कम करता है तथा Good High Density Cholesterol (HDL-c) में वृद्धि करता है।
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इन सभी अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकलता है कि गुडहल हृदय, गुर्दे व मूत्रमार्ग स्वास्थ्य में वृद्धि करता है।

एक्टीवेटिड कार्बन (Activated Carbon) से फ्रिज की दुर्गंध खत्म करना

एक्टीवेटिड कार्बन (Activated Carbon) से फ्रिज की दुर्गंध खत्म करना



दो मास पूर्व की बात है, घर के फ्रिज में अचानक जले दूध की दुर्गंध आने लगी। फ्रिज में जला दूध नहीं रखा गया था फिर भी पता नहीं कैसे यह दुर्गंध आने लगी थी। दुर्गंध धीरे धीरे बढ रही थी। दो तीन दिन में दुर्गंध बहुत अधिक हो गई थी। श्रीमतिजी बड़बड़ाने लगी, “अभी दस दिन पहले तो सारी फ्रिज का सामान निकाल कर सफाई की थी, अब फिर करनी पड़ेगी। कितनी मेहनत से सफाई होती है।” वाकई परेशानी की बात थी। मैंने एक प्रयोग करने का विचार किया। मैंने कहा, “अभी सफाई मत करो, मैं कुछ करके देखता हूँ, शायद बात बन जाए।”

मैंने ग्रेन्युलर एक्टीवेटिड कार्बन एक कटोरे में भर कर फ्रिज में रख दिया। दुर्गंध धीरे धीरे कम होने लगी और 4-5 दिन में पूरी तरह समाप्त हो गई। एक्टीवेटिड कार्बन में दुर्गंध और गैसें सोखने का अदभुत गुण होता है। साधारण या उच्च तापमान पर यह क्रिया लगभग तुरन्त होती है, लेकिन निम्न तापमान पर सोखने की क्रिया धीमी हो जाती है। इसलिये फ्रिज की दुर्गंध समाप्त होने में कई दिन लग गए। एक्टीवेटिड कार्बन का प्रयोग कमरों, अलमारियों या अन्य बन्द स्थानों की दुर्गंध समाप्त करने के लिये भी किया जा सकता है। फ्रिज की दुर्गंध सोखने के लिये सोडियम बाईकार्बोनेट का प्रयोग मैंने कई बार पढ़ा है लेकिन कभी करके नहीं देखा। सोडियम बाईकार्बोनेट को खाने वाला सोडा या मीठा सोडा भी कहा जाता है। एक्टीवेटिड कार्बन पाउडर और दानेदार दो तरह का आता है। इस प्रकार के कामों के लिये दानेदार लेना चाहिये।


कोई उत्साही व्यक्ति चाहे तो एक्टीवेटिड कार्बन के पाउच बना कर फ्रिज और अलमारी दुर्गंध नाशक के रूप में व्यवसाय भी कर सकते हैं।


जो एक्टीवेटिड कार्बन फ्रिज के दुर्गंधहरण (Deodorization) के उपयोग के विषय में मैंने लिया था वह नारियल के खोल (Coconut Shell) को वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में जला कर बनाया जाता है। इसे एक्टीवेटिड चारकोल (Activated Charcoal) भी कहा जाता है। एक्टीवेटिड कार्बन अन्य लकड़ियों को जलाकर भी बनाया जाता है, लेकिन नारियल खोल वाला कार्बन सर्वोत्तम होता है। नारियल खोल को जलाकर कोयला बनाने के बाद उसे कई घन्टे तक उच्चदाब पर वाष्प (High Pressure Steam) से उपचारित किया जाता है। इस उपचार से कोयले के सूक्ष्म रंध्रों (pores छिद्रों ) की सफाई होकर वे खुल जाते हैं। इस उपचार से कोयले के छिद्रों की दुर्गंध सोखने की क्षमता बढ़ जाती है। सोखने की इस क्षमता को आयोडीन मान (Iodine Value) में नापा जाता है।आयोडीन मान को संक्षेप में IV कहा जाता है। बाज़ार में साधारणतया 400 IV से लेकर 1500 IV तक के एक्टीवेटिड कार्बन उपलब्ध हैं। IV जितनी अधिक होती है सोखने की क्षमता उतनी ही अधिक होती है। 900 IV के कार्बन मध्यम क्षमता के कार्बन होते हैं और अधिकांश उपयोगों में अच्छे माने जाते हैं। एक्टीवेटिड कार्बन चूर्ण (Powder), दानेदार (Granular), टिकिया (pellets) और खण्डों (Blocks) के रूप में मिलता है। फ्रिज, अलमारी या पेटी आदि में रखने के लिये दानेदार एक्टीवेटिड कार्बन (Granular Activated Carbon) की थैली बना कर प्रयोग करनी चाहिये। यही दानेदार कार्बन पेयजल तथा अपशिष्ट जल (Wastewater) के शुद्धिकरण के काम में भी लाया जाता है, इसलिये वाटर ट्रीटमेंट का काम करने वालों से यह प्राप्त किया जा सकता है। घरेलू RO water purifier में भी एक फिल्टर एक्टीवेटिड कार्बन का लगा होता है। इस कार्बन के 25 या 50 किलो के बैग आते हैं। कम मात्रा में आजकल ऑनलाइन व्यापारी घरेलू उपयोग के लिये बेच रहे हैं।

Sunday, February 18, 2018

Liquid Soap तरल साबुन



तरल अपमार्जक (साबुन) Liquid Detergents (Soap)

तरल साबुन (Liquid Soap) भारत में पिछले 60 वर्षों से चलन में है। 70-80 के दशक में अधिक बिकना शुरू हुआ था। उस समय तरल साबुन डोडेसाइल बैंजीन सल्फोनिक एसिड (Dodecylbenzene Sulfonic Acid) से बनाया जाता था। वाशिंग पाउडर भी Dodecylbenzene Sulfonate से ही बनाए जाते थे। Dodecylbenzene Sulfonate भारत में नहीं बनता था, विदेशों से आयात किया जाता था। Dodecylbenzene Sulfonate को भारतीय बाज़ारों में हार्ड एसिड स्लरी (Hard Acid Slurry) कहा जाता था। हार्ड एसिड स्लरी में झाग देने और सफाई करने के गुण बहुत अच्छे होते हैं लेकिन यह जैव विघटनीय (biodegradable) नहीं होती। जैव विघटनीय का अर्थ है जीवाणुओं के द्वारा विघटित होकर  समाप्त हो जाना। जैव विघटनीय न होने के कारण यह पर्यावरण के लिये भारी समस्या उत्पन्न कर रहा था।

60 के दशक में Linear Alkyl Benzene (LAB) अस्तित्व में आया। इससे बनने वाला Linear Alkyl Benzene Sulfonic Acid (LABSA) जैव विघटनीय होता है। इसलिये शीघ्र ही अधिकांश उपयोगों में Dodecylbenzene Sulfonic Acid का स्थान LABSA ने ले लिया। सन् 1985 में Indian Petrochemicals Limited (IPCL) अब Reliance Industries Ltd. (RIL) ने भारत में Linear Alkyl Benzene का उत्पादन प्रारम्भ किया। तब IPCL ने भारत में Linear Alkyl Benzene को सल्फोनेट करके Linear Alkyl Benzene Sulfonic Acid (LABSA) निर्माण करने की तकनीक भारतीय उद्योगों को देकर भारत में ही Linear Alkyl Benzene Sulfonic Acid (LABSA) बनवाना शुरू किया। इसे भारत में Soft Acid Slurry कहा जाने लगा। तब से भारत में अधिकांश तरल साबुन सोफ्ट एसिड स्लरी से बनाया जाता है।


भारत में एसिड स्लरी 90% और 96% के दो ग्रेडों में मिलती है। 90% से कम LABSA प्रतिशत की भी कुछ लोग बनाते हैं लेकिन वह अच्छी नहीं मानी जाती, उससे अच्छे डिटर्जेंट नहीं बनते। 


एसिड स्लरी एक अम्लीय (Acidic) प्रकृति का रसायन होता है। तरल साबुन बनाने के लिये इसे किसी क्षार (Alkali) के साथ प्रतिक्रिया (reaction) करवा कर उदासीन (Neutral) कर लिया जाता है। क्षार के रूप में अधिकतर कास्टिक सोडे का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी किसी विशेष उपयोग के लिये अमोनिया या ट्राईइथानोलएमाइन (Triethanolamine) का प्रयोग भी किया जाता है। कास्टिक सोडे से उदासीन करने के बाद इसका रसायनिक नाम Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate होता है। Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate एक उत्तम अपमार्जक (detergent), पायसीकारक (Emulsifier), झाग देने वाला (Foaming agent), और गीला करने में सहायक रसायन है। ये सारे गुण एक अच्छे तरल साबुन में भी होने चाहिये।


 Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate का जलीय विलयन या घोल (solution) एक अच्छा साधारण अपमार्जक (light duty liquid detergent) है। Light Duty Liquid Detergents (LDLDs) में क्षारीय पदार्थ व अन्य तीव्र रसायन नहीं मिलाये जाते। इसलिये LDLDs हाथ से धोए जाने वाले बर्तन, ग्लास तथा अन्य रसोई के उपकरण धोने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। इनका प्रयोग नाजुक कपड़े या अन्य घरेलू सामान धोने के लिये भी किया जाता है। उपभोक्ता लाइट ड्यूटी तरल साबुन में अच्छी सफाई, खूब झाग, हाथों के लिये हानिरहित, सुगंध, धुलाई में सरलता, बर्तनों की सुरक्षा, अच्छी पैकिंग आदि गुणों को पसन्द करते हैं। आजकल कुछ तरल साबुन अधिक शक्तिशाली और कीटाणुनाशक गुणों से युक्त भी आ रहे हैं। 


तरल साबुनों की दूसरी श्रेणी है Heavy Duty Liquid Detergents (HDLDs). HDLD बनाने के लिये LDLDs में ही कुछ अवयव और मिलाए जाते हैं जैसे--  builders, enzymes, polymers, optical brighteners, bleaches, antimicrobial agent and fragrance आदि। ये पदार्थ तरल साबुन के गुणों में वृद्धि करते हैं।


Builder जल के खारेपन (hardness) को निष्क्रिय करते हैं तथा धूल व मैल को धोई जाने वाली वस्तु से अलग करते हैं। तरल साबुनों में डाले जाने वाले Builder हैः Borax, sodium and potassium polyphosphates, carbonates (Sodium Carbonate also called Soda Ash), aluminosilicates (zeolite A), silicates (Sodium Silicate especially Sodium Metasilicates), citrates (Trisodium Citrate), and fatty acid soaps.



Enzymes में प्रायः protease तथा amylase का प्रयोग किया जाता है। प्रोटिएस प्रोटीन आधारित मैल जैसे रक्त और प्रोटीन वाले भोजन आदि को घोल देता है। एमाइलेस स्टार्च आधारित मैल को घोल देता है। Lipase लाइपेस नाम का एन्जाइम तैल व ग्रीस जैसे चिकनाई वाले दागों को घोल देता है। आजकल डिटर्जेंट में डालने के लिये इनके तैयार मिश्रण बाज़ार में उपलब्ध हैं। एन्जाइम्स डालने का मुख्य उद्देश्य दाग धब्बे छुड़ाने के गुणों में वृद्धि करना होता है।



सूती कपड़ों पर बार बार धोने से पीलापन आने लगता है। Optical Brighteners या fluorescent whitening agents ऐसे रसायन होते हैं जो ultraviolet radiation को सोखकर नीला प्रकाश देते हैं जिससे यह पीलापन कम हो जाता है और मानवीय आँखों को कपड़ा अधिक सफेद और चमकदार दिखाई देता है। भारत मे उपलब्ध टीनोपाल या रानीपाल ऐसे ही Optical Brighteners हैं।



तरल साबुनों में बहुत प्रकार के पोलिमर विभिन्न गुणों की वृद्धि के लिये डाले जाते हैं। उदाहरण के लिये polyoxyethylene diamine चिकनाई और ग्रीस की सफाई के लिये, amino acid copolymer जिद्दी दागों के लिये, Low molecular-weight polyacrylates धूल व मिट्टी को धोने वाले जल से वापिस कपड़े पर जमने से रोकने के लिये, polyethylene glycol घुलनशीलता बढाने के लिये। कुछ नये पोलिमर आए हैं जो कपड़े में सिलवटें पड़ने से रोकते है, जिससे कपड़े पर इस्त्री करना सरल हो जाता है। तरल साबुन का गाढापन बढाने के लिये भी बहुत सारे प्राकृतिक व संश्लेषित (Synthetic) पोलिमर उपलब्ध हैं।



कई बार रंगींन कपड़ों का रंग धोते समय अन्य कपड़ों पर चढ जाता है। इस समस्या को रोकने के लिये भी कुछ पोलीमर उपलब्ध हैं। Polyvinylpyrrolidone (PVP) एक ऐसा ही पोलीमर है जो रंग स्थानान्तरण (dye transfer) को रोकता है। 


आजकल तरल साबुनों में विरंजक (Bleach) भी मिलाए जाने लगे हैं। विरंजक रसायन दाग-धब्बों को रसायनिक प्रक्रिया के द्वारा या तो हल्का कर देते हैं या पूरी तरह मिटा देते हैं। ये रसायनिक विरंजक अच्छे कीटाणुनाशक भी होते हैं। रसायनिक विरंजकों में hydrogen peroxide, sodium perborate, sodium percarbonate आदि प्रयोग में लाए जाते हैं।


जब LABSA को कास्टिक के घोल से उदासीन किया जाता है या कोई बिल्डर मिलाया जाता है तो तरल साबुन पारदर्शी नहीं रहता। इसका कारण होता है कुछ पदार्थों का जल में पूरी तरह से न घुल पाना। ये बिना घुले पदार्थ शुरू में साबुन में तैरते रहते हैं जिसके कारण साबुन पारदर्शी नहीं रह पाता, और कुछ दिन रखे रहने पर धीरे धीरे नीचे बैठ जाते हैं या ऊपर आ जाते हैं। इस समस्या के निराकरण के लिये तरल साबुनों में कुछ रसायन मिलाये जाते हैं जिन्हें Hydrotrope कहा जाता है। Hydrotrope बिना घुले पदार्थों को जल में घोल देते हैं। Hydrotrope के रूप में Sodium Xylenesulfonate, Sodium Cumenesulfonate, Sodium Toluenesulfonate तथा Urea आदि का प्रयोग किया जाता है। यूरिया इन सब में सस्ता है किन्तु अधिक pH पर अमोनिया की दुर्गंध दे सकता है।


तरल साबुनों में कीटाणुनाशकों (Antimicrobial agents) का चलन 1994 से शुरू हुआ जब कोलगेट पामोलिव कम्पनी ने अपने हाथ धोने व बर्तन धोने वाले तरल साबुनों मे triclosan मिला कर प्रस्तुत किया। कीटाणुनाशकों का उपयोग अधिकांशतः LDLDs में किया जाता है। कीटाणुनाशक रसायनों में triclosan (2,4,4_-trichloro-2_-hydroxydiphenyl ether), triclorocarban (TCC),  para-chloro-meta-xylenol (PCMX), Sodium hypochlorite और Benzalkonium Chloride आदि का प्रयोग किया जाता है। हर्बल कीटाणुनाशक के रूप में पाइन ऑइल (Pine Oil) और टी ट्री ऑइल (Tea Tree Oil) का प्रयोग किया जाता है।


तरल साबुनों में जीवाणुओं (bacteria) और फफूंद (fungus) को होने से रोकने के लिये उनमें परिरक्षक (Preservatives) का मिलाना अत्यन्त आवश्यक होता है। परिरक्षक के अभाव में ये उत्पाद रखे हुए खराब हो जाते हैं। परिरक्षकों में formaldehyde or formaldehyde donors (imidazolidinyl compounds or dimethylhydantoin), combinations of dimethylhydantoin and iodopropylbutylcarbamate (IPBC), benzoic acid, tetrasodium EDTA(preservation efficacy booster), sodium benzoate, sodium salicylate, methylchloroisothiazolinone, methylisothiozolinone, benzyl salicylate, butylphenyl methylpropional, hydroxylsohexyl 3-cyclohexene carboxyaldehyde, methylparaben, and propylparaben. आदि हैं। परिरक्षकों की मात्रा फार्मूले के घटक द्रव्यों, पी.एच. मान (pH value), और जल की मात्रा पर निर्भर करती है।

 

तरल साबुन में मिलाए जाने वाले घटकों (Ingredients) की और भी बहुत बड़ी संख्या है। किसी भी फार्मूले में डाले जाने वाले घटको का चुनाव उसके इस्तेमाल पर निर्भर करता है। इन घटकों की जानकारी उपयोग के आधार पर फार्मूलेशन देते समय देने का प्रयास करूँगा। 

कृपया अगली पोस्ट की प्रतीक्षा करें।