तरल अपमार्जक
(साबुन) Liquid Detergents (Soap)
तरल साबुन (Liquid Soap) भारत में पिछले 60 वर्षों से चलन में
है। 70-80 के दशक में अधिक बिकना शुरू हुआ था। उस समय तरल साबुन डोडेसाइल बैंजीन
सल्फोनिक एसिड (Dodecylbenzene Sulfonic Acid) से बनाया जाता
था। वाशिंग पाउडर भी Dodecylbenzene Sulfonate से ही बनाए
जाते थे। Dodecylbenzene Sulfonate भारत में नहीं बनता था, विदेशों से
आयात किया जाता था। Dodecylbenzene Sulfonate को भारतीय
बाज़ारों में हार्ड एसिड स्लरी (Hard Acid Slurry) कहा जाता था।
हार्ड एसिड स्लरी में झाग देने और सफाई करने के गुण बहुत अच्छे होते हैं लेकिन यह जैव
विघटनीय (biodegradable) नहीं होती। जैव विघटनीय का अर्थ है
जीवाणुओं के द्वारा विघटित होकर समाप्त हो
जाना। जैव विघटनीय न होने के कारण यह पर्यावरण के लिये भारी समस्या उत्पन्न कर रहा
था।
60 के दशक में Linear Alkyl Benzene (LAB) अस्तित्व
में आया। इससे बनने वाला Linear Alkyl Benzene
Sulfonic Acid (LABSA) जैव विघटनीय होता है। इसलिये शीघ्र ही
अधिकांश उपयोगों में Dodecylbenzene Sulfonic Acid का स्थान LABSA
ने
ले लिया। सन् 1985 में Indian Petrochemicals Limited (IPCL) अब Reliance
Industries Ltd. (RIL) ने भारत में Linear Alkyl Benzene
का उत्पादन प्रारम्भ किया। तब IPCL ने भारत में Linear Alkyl Benzene को सल्फोनेट करके Linear Alkyl Benzene Sulfonic Acid (LABSA)
निर्माण करने की तकनीक भारतीय उद्योगों को देकर भारत में ही Linear Alkyl Benzene Sulfonic Acid (LABSA)
बनवाना शुरू किया। इसे भारत में Soft Acid
Slurry कहा जाने लगा। तब से भारत में अधिकांश तरल साबुन सोफ्ट एसिड
स्लरी से बनाया जाता है।
भारत में एसिड स्लरी 90%
और
96% के दो ग्रेडों में मिलती है। 90% से कम LABSA प्रतिशत की भी कुछ लोग बनाते हैं लेकिन वह अच्छी नहीं मानी
जाती, उससे अच्छे डिटर्जेंट नहीं बनते।
एसिड स्लरी एक अम्लीय (Acidic)
प्रकृति
का रसायन होता है। तरल साबुन बनाने के लिये इसे किसी क्षार (Alkali) के साथ प्रतिक्रिया (reaction) करवा कर उदासीन (Neutral) कर लिया जाता है। क्षार के रूप में
अधिकतर कास्टिक सोडे का प्रयोग किया जाता है। कभी कभी किसी विशेष उपयोग के लिये
अमोनिया या ट्राईइथानोलएमाइन (Triethanolamine)
का
प्रयोग भी किया जाता है। कास्टिक सोडे से उदासीन करने के बाद इसका रसायनिक नाम Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate होता
है। Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate एक
उत्तम अपमार्जक (detergent),
पायसीकारक (Emulsifier), झाग
देने वाला (Foaming agent), और
गीला करने में सहायक रसायन है। ये सारे गुण एक अच्छे तरल साबुन में भी होने
चाहिये।
Sodium Linear Alkylbenzene Sulfonate
का जलीय विलयन या
घोल (solution) एक अच्छा साधारण अपमार्जक (light duty liquid detergent) है। Light Duty Liquid Detergents (LDLDs) में
क्षारीय पदार्थ व अन्य तीव्र रसायन नहीं मिलाये जाते। इसलिये LDLDs हाथ से धोए जाने वाले बर्तन, ग्लास तथा
अन्य रसोई के उपकरण धोने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। इनका प्रयोग नाजुक कपड़े
या अन्य घरेलू सामान धोने के लिये भी किया जाता है। उपभोक्ता लाइट ड्यूटी तरल
साबुन में अच्छी सफाई, खूब झाग, हाथों के लिये हानिरहित, सुगंध, धुलाई में सरलता,
बर्तनों की सुरक्षा, अच्छी पैकिंग आदि गुणों को पसन्द करते हैं। आजकल कुछ तरल
साबुन अधिक शक्तिशाली और कीटाणुनाशक गुणों से युक्त भी आ रहे हैं।
तरल साबुनों की दूसरी श्रेणी है Heavy Duty Liquid Detergents (HDLDs). HDLD बनाने
के लिये LDLDs में ही कुछ अवयव और मिलाए जाते हैं
जैसे-- builders, enzymes, polymers, optical brighteners,
bleaches, antimicrobial agent and fragrance आदि। ये पदार्थ
तरल साबुन के गुणों में वृद्धि करते हैं।
Builder जल के खारेपन (hardness) को निष्क्रिय करते हैं तथा धूल
व मैल को धोई जाने वाली वस्तु से अलग करते हैं। तरल
साबुनों में डाले जाने वाले Builder हैः Borax,
sodium and potassium
polyphosphates, carbonates (Sodium Carbonate also called
Soda Ash), aluminosilicates (zeolite A), silicates (Sodium
Silicate especially Sodium Metasilicates), citrates (Trisodium Citrate), and
fatty acid soaps.
Enzymes में प्रायः protease तथा amylase का प्रयोग किया जाता है। प्रोटिएस प्रोटीन
आधारित मैल जैसे रक्त और प्रोटीन वाले भोजन आदि को घोल देता है। एमाइलेस स्टार्च
आधारित मैल को घोल देता है। Lipase लाइपेस नाम का एन्जाइम तैल व
ग्रीस जैसे चिकनाई वाले दागों को घोल देता है। आजकल डिटर्जेंट में डालने के लिये
इनके तैयार मिश्रण बाज़ार में उपलब्ध हैं। एन्जाइम्स डालने का मुख्य उद्देश्य दाग धब्बे छुड़ाने के गुणों में
वृद्धि करना होता है।
सूती कपड़ों पर बार बार धोने से पीलापन आने
लगता है। Optical
Brighteners या fluorescent whitening agents ऐसे रसायन होते हैं जो ultraviolet radiation को सोखकर नीला प्रकाश देते हैं जिससे यह पीलापन कम हो जाता है और मानवीय
आँखों को कपड़ा अधिक सफेद और चमकदार दिखाई देता है। भारत मे उपलब्ध टीनोपाल या
रानीपाल ऐसे ही Optical
Brighteners हैं।
तरल साबुनों में बहुत प्रकार के पोलिमर
विभिन्न गुणों की वृद्धि के लिये डाले जाते हैं। उदाहरण के लिये polyoxyethylene diamine चिकनाई और ग्रीस की सफाई के लिये, amino acid copolymer जिद्दी दागों के लिये, Low molecular-weight polyacrylates
धूल व मिट्टी को धोने वाले जल से वापिस कपड़े पर जमने से रोकने के लिये, polyethylene glycol घुलनशीलता
बढाने के लिये। कुछ नये पोलिमर आए हैं जो कपड़े में सिलवटें पड़ने से रोकते है,
जिससे कपड़े पर इस्त्री करना सरल हो जाता है। तरल साबुन का गाढापन बढाने के लिये
भी बहुत सारे प्राकृतिक व संश्लेषित (Synthetic) पोलिमर उपलब्ध हैं।
कई बार रंगींन कपड़ों का रंग धोते
समय अन्य कपड़ों पर चढ जाता है। इस समस्या को रोकने के लिये भी कुछ पोलीमर उपलब्ध
हैं। Polyvinylpyrrolidone
(PVP)
एक ऐसा ही पोलीमर है जो रंग स्थानान्तरण (dye transfer) को रोकता है।
आजकल तरल साबुनों में विरंजक (Bleach) भी मिलाए जाने लगे हैं। विरंजक रसायन दाग-धब्बों को रसायनिक प्रक्रिया
के द्वारा या तो हल्का कर देते हैं या पूरी तरह मिटा देते हैं। ये रसायनिक विरंजक
अच्छे कीटाणुनाशक भी होते हैं। रसायनिक विरंजकों में hydrogen peroxide, sodium
perborate, sodium percarbonate आदि प्रयोग में लाए जाते हैं।
जब LABSA
को कास्टिक के घोल से उदासीन किया जाता है या कोई बिल्डर मिलाया जाता है तो तरल
साबुन पारदर्शी नहीं रहता। इसका कारण होता है कुछ पदार्थों का जल में पूरी तरह से
न घुल पाना। ये बिना घुले पदार्थ शुरू में साबुन में तैरते रहते हैं जिसके कारण
साबुन पारदर्शी नहीं रह पाता, और कुछ दिन रखे रहने पर धीरे धीरे नीचे बैठ जाते हैं
या ऊपर आ जाते हैं। इस समस्या के निराकरण के लिये तरल साबुनों में कुछ रसायन
मिलाये जाते हैं जिन्हें Hydrotrope कहा जाता है। Hydrotrope बिना घुले पदार्थों को जल में घोल देते हैं। Hydrotrope के रूप में Sodium Xylenesulfonate, Sodium Cumenesulfonate, Sodium
Toluenesulfonate तथा Urea
आदि का प्रयोग किया जाता है। यूरिया इन सब में सस्ता है किन्तु अधिक pH पर अमोनिया की दुर्गंध दे सकता है।
तरल साबुनों में कीटाणुनाशकों (Antimicrobial
agents) का चलन 1994 से शुरू
हुआ जब कोलगेट पामोलिव कम्पनी ने अपने हाथ धोने व बर्तन धोने वाले तरल साबुनों मे triclosan मिला कर प्रस्तुत किया।
कीटाणुनाशकों का उपयोग अधिकांशतः LDLDs
में किया जाता है। कीटाणुनाशक रसायनों में triclosan
(2,4,4_-trichloro-2_-hydroxydiphenyl ether), triclorocarban
(TCC), para-chloro-meta-xylenol
(PCMX), Sodium hypochlorite और
Benzalkonium
Chloride आदि का प्रयोग किया जाता है। हर्बल
कीटाणुनाशक के रूप में पाइन ऑइल (Pine Oil) और टी ट्री ऑइल (Tea Tree Oil) का प्रयोग किया जाता है।
तरल साबुनों
में जीवाणुओं (bacteria) और
फफूंद (fungus) को होने से रोकने के लिये उनमें
परिरक्षक (Preservatives) का
मिलाना अत्यन्त आवश्यक होता है। परिरक्षक के अभाव में ये उत्पाद रखे हुए खराब हो
जाते हैं। परिरक्षकों में formaldehyde or formaldehyde donors
(imidazolidinyl compounds or dimethylhydantoin), combinations of
dimethylhydantoin and iodopropylbutylcarbamate (IPBC), benzoic
acid, tetrasodium EDTA(preservation efficacy booster), sodium benzoate, sodium
salicylate, methylchloroisothiazolinone, methylisothiozolinone, benzyl
salicylate, butylphenyl methylpropional, hydroxylsohexyl 3-cyclohexene
carboxyaldehyde, methylparaben, and propylparaben. आदि हैं। परिरक्षकों की मात्रा फार्मूले के घटक द्रव्यों, पी.एच. मान (pH value), और जल की
मात्रा पर निर्भर करती है।
तरल साबुन में
मिलाए जाने वाले घटकों (Ingredients) की
और भी बहुत बड़ी संख्या है। किसी भी फार्मूले में डाले जाने वाले घटको का चुनाव
उसके इस्तेमाल पर निर्भर करता है। इन घटकों की जानकारी उपयोग के आधार पर फार्मूलेशन देते समय देने का प्रयास करूँगा।
कृपया अगली पोस्ट की प्रतीक्षा करें।